This morning, I found my old diaries. Years ago, in my teen age, I wrote following. though I have changed a lot, but these were part of me, Once.
एक बार तन्हाई मेरे पास आई , कहने लगी अब ख़ामोशी का साथ गवारा नहीं । बहुत चुप चुप रहती है । मुझे कोई और चाहिए जो मेरे खालीपन को भर दे । जो हँसे, मुस्कुराए , मेरी सुने और अपनी सुनाए । मैंने कहा कि मैं भी अकेला हूँ, आओ हमतुम दोस्ती कर लें । अकेलेपन से मैं भी डरता हूँ ।
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बंद दरवाजे के पीछे मैं और आइना बातें कर रहे थे । अचानक तुम आ गई आईने के पीछे । कहा तुमने कि एक दिन आइना बन जाऊंगी तुम्हारा । शायद दिलासा देती थी तुम ।
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कभी कोशिश की थी खुद को समझने की ,
दिन पर दिन, साल दर साल बीतते रहे
जैसे ये कभी रहे ही नहीं, सपनो की तरह
आज भी वहीं खड़ा हूँ
जहाँ से चला था ।
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आज सफाई की घर के उस कमरे की
जहाँ कोई नहीं जाता, प्रवेश निषेध है
पुराने अख़बार, रद्दी , बचपन की यादें
कुछ किताबें मेरी हैं वहाँ
एक चिठ्ठी मिले उसमे तुम्हारी
नहीं, तुम्हारे नाम की
वही घिसा पिटा प्यार का इज़हार
हाँ, तुम्हे देने की हिम्मत नहीं हुई थी
अब मैं तुम्हे प्यार नहीं करता
किन्तु वो दिन, वो स्मृतियाँ
मेरी धरोहर हैं ।
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